1857 ki Kranti in Hindi pdf | pdf download

भारत को अंग्रेजी राज से आजादी भले ही वर्ष 1947 में मिली लेकिन देश को आजाद करने की जादोजहत और प्रयास काफी पहले ( 1857 ki Kranti in Hindi pdf ) से शुरू हो चुके थे। इस प्रयास की शुरुआती चरण का सबसे सफल परिणाम था 1857 का स्वतंत्रता संग्राम। इस क्रांति ने ही पहली बार भारतीयों की ताकत से अंग्रेजों को परिचय कराया था।

क्रांति की शुरुआत

इस क्रांति ( 1857 ki Kranti in Hindi pdf ) की शुरुआत की थी चौतीसी बटालियन इन्फेंट्री की 6 वीं कंपनी की एक साधारण से सैनिक मंगल पांडे ने। 8 अप्रैल को मंगल पांडे की फांसी के साथ ही विद्रोह की चिंगारी भड़काने लगी और जल्दी ही इसे दावानल का रूप धारण कर लिया। मंगल पांडे की शहादत से और भी सिपाही प्रभावित हुए।

मेरठ में सिपाहियों ने एनफील्ड राइफल का इस्तेमाल करने से मना कर दिया। सिपाहियों की इस विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेज हुकूमत ने विद्रोह करने वाले सैनिकों को जेल में डाल दिया। अंग्रेज शासको ने सोचा था कठोर दमन की नीति से सैनिक डर की आवाज नहीं उठाएंगे लेकिन परिणाम इसके विपरीत हुआ। मेरठ में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया और दिल्ली की ओर चल पड़े।

दिल्ली पहुंचकर इस टुकड़ी ने तत्कालीन मुगल शासक बहादुर शाह जफर को हिंदुस्तान का सम्राट घोषित कर दिया और उनके नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। देखते ही देखते इसमें अनुशासक और नीति निदेशक भी शामिल होते गए जिन्होंने अलग-अलग स्थान पर युद्ध में भारतीय सेवा के नेतृत्व किया।

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1857 के क्रांति के कारण

1857 की क्रांति ( 1857 ki Kranti in Hindi pdf ) के कई महत्वपूर्ण कारण जिम्मेवार थे। जिसमे सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक आदि। इनका विस्तार हमने निचे कुछ बिंदुओं की सहायता से की हैं।

तात्कालिक कारण

1857 ki Kranti in Hindi pdf का तात्कालिक कारण थी नई एनफील्ड राइफल। इन राइफल को लेकर यह अफवाह फैली थी कि इनमें गाय और सूअर की चर्बी का इस्तेमाल किया गया है। जो कि एनफील्ड राइफल में एक चिकनी कागज का आवरण होता था जिसके सहारे राइफल में लोड करने से पहले काटना पड़ता था।

इन नए कारतूसों को मुंह से खोलना पड़ता था। इसलिए हिंदू मुस्लिम सभी सैनिकों के लिए इसका इस्तेमाल करना धर्म संकट के समान था। सैनिकों को संदेह होने लगा की सरकार सक्रिय रूप से उनके धर्म को कमजोर करने का प्रयास कर रही है। मंगल पांडे सहित अन्य सैनिकों के विद्रोह करने के पीछे मुख्य वजह यही थी।

डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स – 1857 ki Kranti in Hindi pdf

डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स या हड़प के सिद्धांत के तहत बड़ी संख्या में भारतीय शासको और प्रमुखों को अपदस्त कर दिया गया। गौर करने वाली बात यह है कि डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स नमक ब्रिटिश तकनीक पहली बार 1840 के दशक के अंत में लॉर्ड डलहौजी द्वारा लागू की गई थी।

इसमें प्रकृतिक उत्तराधिकारी के बिना एक हिंदू शासक को उत्तराधिकारी अपनाने से रोकना और शासन के मरने या त्यागने के बाद उसकी भूमि पर कब्जा करना शामिल था। इसके शिकार बहुत से राज्य हुए। डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स के तहत अंग्रेजों ने रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र को झांसी की गद्दी पर बैठे की अनुमति नहीं प्रदान की।

इसके अलावा सतारा, नागपुर, जैतपुर, संबलपुर और उदयपुर पर भी हड़प सिद्धांत के तहत ब्रिटिश हुकूमत ने अपने अधीन कर लिया। कुशासन के बहाने लॉर्ड डलहौजी द्वारा अवध पर कब्जा करने से हजारों सरदार, अधिकारी, नौकर और सैनिक बेरोजगार हो गए। ब्रिटिश सत्ता की इस कार्य ने अवध एक वफादार राज्य को असंतोष और साजिश के केंद्र में बदल दिया।

सामाजिक और धार्मिक कारण

इसके अलावा (1857 ki Kranti in Hindi pdf) सामाजिक और धार्मिक कारण भी इस विद्रोह की जिम्मेदार थे। भारत में तेजी से फैल रही पश्चिमी सभ्यता पूरे देश में चिंता का विषय बनी हुई थी। 1850 में एक अधिनियम में विरासत के हिंदू कानून को बदल दिया जिससे ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले हिंदू को अपनी पैतृक संपत्ति विरासत में मिल सके। इससे लोगों को विश्वास हो गया कि सरकार भारतीयों को ईसाई बनाने की योजना बना रही है।

साथ ही भारतीय सामाजिक परंपराओं में अंग्रेजी सत्ता के दखल से भी भारतीय समाज चिंतित था। सती प्रथा और कन्या भ्रूण हत्या जैसे प्रथाओं का उन्मूलन और विधवा पुनर्विवाह को वैद बनाने वाले कानून को स्थापित करना सामाजिक संरचना के लिए खतरा माना गया। शिक्षा के पश्चिमी तरीकों का परिचय सीधे तौर पर हिंदुओं के साथ-साथ मुसलमान की रूढ़िवाद परंपराओं को चुनौती दे रहा था।

आर्थिक कारण

इन सबके अतिरिक्त ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई थी। ग्रामीण क्षेत्रों में किसान और जमींदार भूमि पर भारी करो और कंपनी द्वारा अपनाए गए राजस्व संग्रह की कड़ी तकरीर कर से क्रोधित थे। इनमें से कई समूह भारी राज्यसभा को पूरा करने और साहूकारों को अपना ऋण चुकाने में असमर्थ थे। अंत में अपनी पीढ़ियां से चली आ रही जमीन खो बैठे थे।

इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के बाद भारत में ब्रिटिश निर्मित वस्तुओं की मात्रा बढ़ी जिसने उद्योगों विशेष कर भारत की कपड़ा उद्योग को बर्बाद कर दिया। भारतीय हस्तशिल्प उद्योगों को ब्रिटेन से सस्ते मशीन निर्मित सामानों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही थी। इन सब कार्य से भारतीय समाज में अंग्रेजों के प्रति विद्रोह और नफरत की भावना उठने लगी थी और एनफील्ड राइफल ने इस चिंगारी को भड़काने का काम कर दिया।

1857 ki kranti इतनी व्यापक कैसे हुई ?

अब हम आपको बताते हैं कि किन-किन स्थानों पर इस विद्रोह ने विकराल रूप धारण किया। विद्रोह पटना की पड़ोस से लेकर राजस्थान की सीमा तक पूरे क्षेत्र में फैल गया। इन क्षेत्रों में विद्रोह के मुख्य केंद्र कानपुर, लखनऊ, बरेली, झांसी, ग्वालियर और बिहार, लखनऊ अवध में फैली।

अवध के पूर्व राजा की बेगमों में से एक बेगम हजरत महल ने इस क्षेत्र में विद्रोह का नेतृत्व किया। कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व पेशवा बाजीराव द्वितीय की दत्तक पुत्र नाना साहब ने किया था। वह विद्रोह में इसलिए शामिल हुए क्योंकि अंग्रेजों ने उन्हें उनकी पेंशन से वंचित कर दिया था। झांसी में विद्रोह का नेतृत्व रानी लक्ष्मीबाई ने किया जब अंग्रेजों ने झांसी की गद्दी पर उनके दत्तक पुत्र की दावे को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

हालांकि वे युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुई लेकिन उन्होंने ब्रिटिश सेवा के खिलाफ वीरता पूर्वक युद्ध किया। वहीं बिहार की बात करें तो वहां विद्रोह का नेतृत्व कुंवर सिंह ने किया था जो बिहार के जगदीशपुर की एक शाही घराने से थे। विद्रोह की अग्नि जितनी तेजी से उत्तर और मध्य भारत में फैली थी दक्षिण भारत में माहौल उतना ही शांत था। ब्रिटिश सत्ता ने बहुत ही क्रूरता से सैन्य अभियान चलाकर इस विद्रोह को दबा दिया।

857 ki kranti की  असफलता के क्या कारण थे?

हालांकि यह विद्रोह काफी व्यापक था लेकिन देश का एक बड़ा हिस्सा इससे अप्रभावित रहा जिससे ब्रिटिश हुकूमत शांत क्षेत्र से शासन करते हुए विद्रोह को दबाने की रणनीति बनाने में सफल रही। विद्रोह मुख्यतः उतर भारत के क्षेत्र तक ही सीमित था।

दक्षिण प्रान्त ने इसमें भाग नहीं लिया। बड़ी रियासतें हैदराबाद, मैसूर, श्रावनपुर और कश्मीर साथ ही राजपूताना की छोटी रियासतें विद्रोह में शामिल नहीं हुई। अतः इस विद्रोह का विस्तार संपूर्ण भारत में नहीं हो सका। इसके अलावा प्रभावी नेतृत्व का अभाव भी इस विद्रोह की असफलता का कारण था। यह युद्ध क्षेत्रीय आधार पर अलग-अलग लड़ा जा रहा था। एक सशक्त नेतृत्व की अभाव में विद्रोह( 1857 ki Kranti in Hindi pdf ) की जड़ों को कमजोर कर दिया।

इसके अलावा विद्रोहियों के पास जन और धन के मामले में संसाधनों की कमी थी। दूसरी ओर अंग्रेजों को भारत में सैनिकों धन और हथियारों की निरंतर आपूर्ति प्राप्त हुई। मध्यम वर्ग ने इस विद्रोह में उदासीन अथवा कहीं-कहीं अंग्रेजों के पक्ष में भूमिका निभाई।

अंग्रेजी शिक्षित मध्यम वर्ग बंगाल के अमीर व्यापारियों और जमींदारों ने विद्रोह को दबाने में अंग्रेजों की मदद की।

1857 की क्रांति के परिणाम

1857 का महान विद्रोह ( 1857 ki Kranti in Hindi pdf ) आधुनिक भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। यह विद्रोह सफल भले ही नहीं हुआ लेकिन इससे भारत में अंग्रेजी शासन की नीव हिलाकर रख दी। इस विद्रोह की परिणाम स्वरुप शासन व्यवस्था में कई तरह की परिवर्तन हुए। विद्रोह ने भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन और शोषण का अंत किया।

विद्रोह के फलस्वरुप भारत ब्रिटिश क्राउन की प्रत्यक्ष शासन के अधीन आ गया। इसकी घोषणा लॉर्ड कैनिंग ने 1 नवंबर 1858 को रानी के नाम पर जारी एक उद्घोषणा में इलाहाबादकी एक दरबार में की थी। भारत कार्यालय देश की शान और प्रशासन को संभालने के लिए बनाया गया था। इसके अतिरिक्त शासन व्यवस्था में भारत के रीति रिवाज और परंपराओं पर उचित ध्यान दिया गया था।

साथ ही गवर्नर जनरल की कार्यालय को वायसराय के कार्यालय से बदल दिया गया। भारतीय शासको के अधिकारों को मान्यता दी गई और चक के सिद्धांत को समाप्त कर दिया गया। इसके अतिरिक्त पुत्रों को कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में गोद लेने का अधिकार स्वीकार किया गया। साथ ही भविष्य में ऐसे विद्रोह को रोकने के लिए सैन्य संगठन में परिवर्तन किया गया। सेवा में यूरोपीय सैनिकों की संख्या बढ़ा दी गई और उन्हें प्रमुख भौगोलिक स्थान और सैन्य पदों पर रखा गया।

सेना का भारतीय भाग अब फूट डालो और राज करो की नीति के अनुसार संगठित किया गया। सैनिकों में राष्ट्रवादी भावना विकसित होने से रोकने के लिए जाति समुदाय और क्षेत्र के आधार पर रेजीमेंटों का गठन किया गया। निष्कर्ष तौर पर यह कहा जा सकता है कि 1857 का विद्रोह भारत में ब्रिटिश शासन के इतिहास में एक अद्भुत पूर्व घटना थी।

इसे सीमित तरीके से ही सही एक सामान्य उद्देश्य के लिए भारतीय समाज के कई वर्गों को एकजुट किया। हालांकि विद्रोह वांछित लक्ष्य हासिल करने में असफल रहा लेकिन इससे भारतीय राष्ट्रवाद के बीज बो दिए।

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